दो दूना बाईस
दो दूना बाईस
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बेवजह में वजह ढूंढने की गुंज़ाइश चाहिये !
काम हो न हो पर होने की नुमाइश चाहिये !!
कौन कितना खरा है, किसमे कितनी खोट !
पहले इस बात की होनी आजमाइश चाहिये !!
दिखावे के दौड़ में शामिल है हर कोई शख्श !
तबज्जो पाने के लिए नई फरमाइश चाहिये !!
इंसान इस कद्र आमादा है अपनी गंगा बहाने को !
ढहे मंदिर या मस्जिद, नपी-तुली पैमाइश चाहिये !!
कटे किसी की गर्दन, या शूली चढ़ाया जाये !
किसी भी हाल पूरी अपनी ख्वाहिश चाहिये !!
मुफ्त में बना देंगे खुदा का रहबर हर किसी को !
शर्त ये है मगर, रईसी में होनी पैदाइश चाहिये !!
कौन चाहता है “धर्म” के फल कर्मानुसार मिले !
बिन हेर-फेर सीधे सीधे दो दूना बाईस चाहिये !!
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डी के निवातिया