*दो दिन फूल खिला डाली पर, मुस्काकर मुरझाया (गीत)*
दो दिन फूल खिला डाली पर, मुस्काकर मुरझाया (गीत)
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दो दिन फूल खिला डाली पर, मुस्काकर मुरझाया
1)
अरे! अभी तो कली खिली थी, प्रथम जगत में आई
कोमल गात लिए यह नभ को, देख-देख बतियाई
खुलने लगीं स्वयं पंखुड़ियॉं, रूप अनोखा छाया
2)
गंध बिखेरी पुष्प-रूप ने, भॅंवरे सौ-सौ आए
मधुर गान की स्वर-लहरी में, राग अनूठे छाए
दिखा-दिखा कर यौवन अपना, जग-भर को ललचाया
3)
अकस्मात यह देखा जग ने, फूल पड़ा कुछ काला
शायद कोई रोग व्याप्त या, बूढ़ेपन से पाला
भूमि बिछौना बनी पवन ने, क्षण में मार गिराया
दो दिन फूल खिला डाली पर, मुस्काकर मुरझाया
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451