दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे
क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे
महल अटारी सब छूटेंगे
खाली हाथ है , जाना रे बन्दे
क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे
क्या लाया था , इस जग में तू
क्या साथ ले जाएगा
भाग रहा भौतिक जग में तू
मोक्ष राह से भटक जाएगा रे बन्दे
क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे
क्या है मेरा , क्या है तेरा
ये जग है , माया का फेरा
साँसों की माला कब टूटेगी
समझ नहीं आयेगा , तुझे रे बन्दे
क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे
दीन दुखियों की परवाह कर तू
कुछ कर्म इंसानियत की राह कर तू
क्यूँ कर माया के पीछे दौड़े
चल आध्यात्म की राह रे बन्दे
क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे
चिंतन में तुम , प्रभु को धारो
जीवन अपना धर्म राह में वारो
जीवन नैया तेरी डगमग डोले
क्यूँ करता मनमानी रे बन्दे
क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”