दो टूक पसंद है मुझको
लम्बी लम्बी फेकने वाले
दुनिया में नाम कमाते हैं
हक उन ही का हारा है
और सच्चे यारों रोते हैं
बात हुई है छोटी-मोटी
लाशों की है यारों खाल
ताकत दिखाने वाले ही
खूब चाटते हैं अब गाल
झूठी बातों में दम नहीं
दो टूक पसंद है मुझको…….
काल मरेगा या मारोगे
हाथ पसारे या पसरेगा
खुद्दारी में है नहीं दम
चले जाओगे यही है गम
पता नहीं ये जीवन कैसा
असत्य अथाह भंडार
बंदूकों की नोक पर ही
दुनिया की गिरती लार
सच की दीवारों पर यारों
दो टूक पसन्द है मुझको…
खुले पंख से उड़ने वाले
यारों कब उड़ जाते हैं
सच्चाई का रास्ता थामें
वो मिट्टी में मिल जाते हैं
मैंने माना सब कुछ है अंदर
लोग कहे तू है नास्तिक
भगवानों का प्रसाद न लेता
फिर भी तू ही है स्वास्तिक
मुझको कुछ भी कह लो यारों
दो टुक पसंद है मुझको….
मैंने सब कुछ पितरों से सीखा
जो जीवन में लेखा देखा
मान रहा हूं और चलता हूं
मैं झूठ बोलना नहीं चाहता हूं
नाम कमाना नहीं है मुझको
कुछ अच्छा कर के जाना है
सीख से दुनिया बदलेगी पर
पथ पर अंगारों की सेज खड़ी है
अच्छा है फिर भी मैं जीता
बस। दो टुक पसंद है मुझको….
मारे जाएंगे फिर जूते
यह कैसा इंसान बना
सच कहने वालों के यारो
कुचले जाएंगे फिर माथा
अंगड़ाई के जीवन में भी
मुझको भौतिकता ना रास आई
बन गया मैं एक अजूबा ही
लोग कहे यह मंगल ग्रही
कुछ भी बोलो यारो मुझको
दो टुक पसंद है मुझको….
सद्कवि
प्रेम दास वसु सुरेखा