दो जून की रोटी—आर के रस्तोगी
मित्रो,आज दो जून है इन्ही दो श्ब्दोके कारण मेरे मन में “दो जून की रोटी “लिखने के प्रेरणा मिली |प्रस्तुत है यह कविता :’-
करता हूँ प्रभु को नमन कोटि कोटि |
जो देता है सबको दो जून की रोटी ||
खिल जाती है श्रमिक की बोटी बोटी |
जब मिल जाती है दो जून की रोटी ||
कृषक खुश होता है आती खेत पर रोटी |
मिलती है जब उसको दो जून की रोटी ||
सुनाती है जनता सरकार को खरी खोटी |
जब मिलती नहीं उसको दो जून की रोटी ||
सुना रहा है राहुल, मोदी को खरी खोटी |
क्योकि संसद में फिट नहीं उसकी गोटी ||
भूल गया है राहुल जनेऊ व सिर की चोटी |
याद आने लगी है केवल दो जून की रोटी ||
सुना रहा है अखिलेश माया को खरी खोटी |
खाई उसने दस,मुझको दी केवल पांच रोटी ||
फिट कर रहे एम पी अपनी अपनी गोटी |
मिल जाये उनको मंत्री की तन्खवा मोटी ||
महँगाई है ज्यादा,जिन्दगी हुई है खोटी |
मुश्किल है जुटाना अब दो जून की रोटी ||
रस्तोगी की है जरा अक्ल बहुत है मोटी |
केवल चाहता है वह भी दो जून की रोटी ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425