दो जून की रोटी।
मां उपले बनाती है…
सूखा कर इनको,
बाजारों में बेंचती है…!!
तब कहीं जाकर,
इस घर में दो जून की,
रोटी बनती है…!!
ये मां योद्धा होती है…
जो तमाम उम्र,
जिंदगी लड़ती है…!!
कभी जीतती,
कभी हारती है…!!
पर मां कभी हिम्मत ना,
छोड़ती है…!!
✍️✍️ ताज मोहम्मद ✍️✍️