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24 Sep 2024 · 1 min read

दो घड़ी बसर कर खुशी से

क्या ले जाना है इस जिंदगी से
दो घड़ी बसर कर खुशी से

वक्त का क्या पता मिले ना मिले
हँस ले दो पल
दिल की कली खिले ना खिले
क्या मिलेगा पलकों पे नमी से
दो घड़ी बसर कर खुशी से

फूल बनकर सदा मुस्कुराए जा
भंवरों को देख
और हर पल यूँ गुनगुनाए जा
सीख ले कुछ तारों की हंसी से
दो घड़ी बसर कर खुशी से

कब दौलत से सब कुछ मिला है
सच्च कहूँ तो
ये कमाना बस सिलसिला है
कौन इसे ले जा सका जमीं से
दो घड़ी बसर कर खुशी से

“V9द” रिश्तों में ही दरारें पड़ी हैं
देखो जिधर भी
शिकवों की मीनारें खड़ी हैं
चेहरे उतरे हैं ये सब बेबसी से
दो घड़ी बसर कर खुशी से

स्वरचित
V9द चौहान

2 Likes · 2 Comments · 29 Views
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