दो किनारे हैं दरिया के
दो किनारे दरिया के हूँ इस पार मैं उस पार तूँ
दोनों का एक हाल है हूँ बेकरार मैं बेकरार तूँ
एक हवा का झौंका आया दे गया संदेशा तेरा
प्यार का नहीं कर सका इज़हार मैं इज़हार तूँ
आसमाँ भी रो दिया यूँ सुनकर हमारी दास्ताँ
करके भी ना रख सका एतबार मैं एतबार तूँ
सूरज छिपा मायूस हो चाँद निकला गमज़दा
उजड़ा चमन कैसे करें गुलजा़र मैं गुलज़ार तूँ
दरिया बन कर बह गई अपनी अधूरी दास्ताँ
‘V9द ‘क्यों ना कर सके इंतजार मैं इंतजार तूँ
स्वरचित
( विनोद चौहान )