दो आँखे
पलके फिर उठती पलके फिर झुकती है,
तुम्हारी आँखे शर्रात से कब रूकती है,
कभी मुझको समझती कभी मुझको डराती,
तुम्हारी ये दो आंखे क्यों टिक नही पाती,
कभी ये ढूंढती है मुझमे खुद को,
कभी ये तनहा खुद को समझ नही पाती,
कभी छुपे राज है कहती कभी दिल का हाल बताती,
मेरी आँखों में देखकर खुद कितना इतराती,
पलके फिर उठती पलके फिर झुकती है,
तुम्हारी आँखे शर्रात से कब रूकती है,
वो खामोश भी रहती शोर भी मचाती,
तुम्हारी आँखे दिल का सब हाल कह जाती,
कभी मेरी परछाई कभी मेरी तन्हाई बन जाती,
तुम्हारी ये दो आंखे मुझको कितना सताती,
कभी लहरो सी लहराती कभी मोती सी चमक जाती,
मेरी यादो में आकर क्यों इतना इतराती,