दोहे
दोहे
१.
क्या बीता होगा प्रिये !, कहो न दिल की बात.
उजियारों के बीच से, गुजरी होगी रात.
२.
काबिज है भूमाफिया, परती जहाँ जमीन.
लोकतंत्र है देखता, सपना एक हसीन.
३.
आज शहर का हो गया, पर्यावरण कलंक.
वायु प्रदूषण मारता, साँस-साँस को डंक.
४.
नियतिवाद की बात है, या यह कुछ संयोग.
मजबूरी का फायदा, उठा रहे हैं लोग.
५.
आपस के सम्बन्ध क्यों, हुए जा रहे गंज.
सास बहू में बिछ रहा, बैठक में शतरंज.
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ