दोहे
प्रेयस एक जुनून
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रख सकते घर को नहीं, किसी तरह गुलजार.
सौ रुपये की दोस्ती, एक फूल का प्यार.
धूप ठहाका मारती, सूरज पढ़ता मंत्र.
बाहर है ठण्डी हवा, अंदर शीतक-यंत्र.
संसद में है हो रहा, शोरशराबा रोज.
राजनीति है खा रही, लंगर-कौआभोज.
साँच झूठ को कह रहा, प्रतिदिन जूताखोर.
‘जनता को हो ठग रहे, तुम हो औवल चोर’.
लाल लिपिस्टिक से सजा, प्रेयस एक जुनून.
गाल अमावस कालिमा, मुख पूनम शशि पून.
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ