दोहे –
संक्षिप्त परिचय
सरिता गुप्ता
शिक्षिका, लेखिका, कवयित्री
दो काव्य संग्रह,तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार
कुशल मंच संचालक, रेडियो,टी वी पर कार्यक्रम प्रसारित
देश भर की जानी-मानी पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित
सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं में निर्णायक की भूमिका
दोहे
(1) जब तक मां घर में रही,सबका था सम्मान ।
जब से मां जग से गयी, घर बन गया मकान।।
(2) जब तक मां थी साथ में, कभी न मानी बात।
जब मां रही न साथ में, याद करें दिन रात ।।
(3) जीवन के हर मोड़ पर,छले गए हर बार ।
मां की ममता साथ थी,हार गया संसार ।।
(4) मां ही घर की बांसुरी, मां ढोलक की थाप।
मां का मुखड़ा देखकर, नाचे मनवा आप।।
(5) प्रेम भाव से बुन रही, रिश्तों का संसार ।
मां सदा कहती यही, रिश्ते जग आधार।।
(6) यह मंत्र मां ने दिया ,देना सबका साथ ।
उसकी कृपा से रहा, हर दम ऊंचा माथ ।।
(7) सूखी सरिता प्रेम की,बहे आंख से नीर ।
मां के बिन संसार में,कौन समझता पीर ।।
(8) रोकर भी देती दुआ, मां ऐसा किरदार।
मां के जैसा तो यहां, नहीं किसी का प्यार।।
(9) मात पिता के चरण में,बसते चारों धाम।
इन दोनों के नाम से, बनते सारे काम।।
(10) ‘सरिता’ कहती आपसे, करो मात का मान।
हर काम बन जाएगा, हो जग में सम्मान ।।