दोहे
घर की बातें”*
अनुशासन जिस घर नहीं,वो घर नरक समान।
खुद को पहले साधिए, घर देवालय जान ।।
मंदिर जैसा घर हुआ,ध्यान राखिए आप।
तन मन दोनों साफ हो , वरना झूठी छाप ।।
बाहर कितने सूरमा , घर में जैसे भेड़।
किसी काम का ना रहे, “मौज” खोखला पेड़।।
जीवन साथी को सदा, देते रहिए मान।
दोनों समझें भावना,तब होगी पहचान।।
घर नियमों की सारणी, पढ़िए ध्यान लगाय।
जिसने की अवहेलना,जीवन भर पछताय।।
मेरा घर मुझसे बना,घर मेरा अधिकार।
घर में डर का वास हो,नहीं मुझे स्वीकार।।
मैं हूं घर की देहरी ,वो घर के भगवान।
आदर कण-कण में बसा,”मौज” करे अभिमान।।
मन मैला मत कीजिए,आए अतिथि द्वार।
प्रेम पुण्य प्रताप से, महक उठे परिवार।।
घरवालों की एकता,जीते सकल जहान।
लड़ते- बढ़ती दूरियां, ले लेती हैं जान ।।
घर में जान लगाइए ,घर सुख-दुख की खान।
बात “मौज” की मानिए , बढ़ जाएगा मान।।
विमला महरिया “मौज”