दोहे
सावन के दोहे
************
बूंद बूंद कर झर रहे, काले बादल आज
सबके मन को भा रहा, सावन का अंदाज ।
कुहू कुहू कोयल कहे, पिहू पपीहा गाय
रुत मस्तानी हो चली, धरा गई हरयाय ।
गगन दामिनि दमक रही,बदरा गरजें जोर
कजरारी छाई घटा, नाचे मन का मोर ।
गीतेश दुबे ” गीत ”
चंद दोहे
*******
दिल्ली के दरबार का, अजब निराला खेल
कुर्सी पाने के लिये, मचती रेलम पेल ।
अलग अलग चहरे दिखें, नेता सारे एक
गडबड घोटाले करें, काम न करते नेक ।
राजनीति के रंग को, ऎसा लियो चढाय
एक बार मंत्री बनो, सात पुश्त तर जाय ।
राजा जी फेंकन चले, प्रजा रही लपटाय
बहुत भयो बस भी करो, घिर्री भर भर जाय ।
पप्पू पर विपदा पड़ी, दिन दिन सीट गँवाय
सूझे न पूछत फिरे, कैसे लाज बचाय ।
” गीत “