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1 Aug 2024 · 1 min read

दोहे

दोहे

भूल गए क्या छोड़ कर,नहीं देत हो ध्यान।
रूठ गए क्यों मित्र जी,कुछ तो रख पहचान।।

दिल को कभी न तोड़ना,यह शीशे का गेह।
कभी न चकनाचूर कर, यह आतम का नेह।।

इसको ठोकर मार कर,क्या पाओगे मित्र?
आ कर देखो निकट से,यह अति शीतल इत्र।।

दिल को रखना मत कभी,इतना अधिक कठोर।
आहत तेरा प्रिय लगे,दुखी सदा मनमोर।।

अति कोमल निर्मल सदा,यह भोला मनजीत।
तेरा ही चिंतन करे,तुझ पर गाये गीत।।

तुझको यह है जानता,तुम्ही रूप रस खान।
तुझमें ही यह खोजता,सकल ब्रह्म का ज्ञान।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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