दोहे
दोहे-*
हे योगेश्वर साँवरे ,वासुदेव हे कृष्ण।
तेरे दर्शन के लिए ,रहते नैन सतृष्ण।।1
किंकर्तव्यविमूढ़ मन ,बना हुआ है पार्थ।
जीवन रण में है खड़ा,छोड़ सत्य पुरुषार्थ।।2
पद के कारण व्यक्ति में,जब आता अभिमान।
रोक नहीं पाता पतन ,फिर उसका भगवान।।3
पास न आने दें कभी,चिंता और तनाव।
देते हैं नासूर सा ,ये सेहत को घाव।।4
हर मुद्दे पर कलम को, चलने दो बेबाक।
घावों पर मरहम लगे,या हो दामन चाक।।5
गलत काम को देखकर,उसको आता क्रोध।
सामाजिक- दायित्व का ,जिसको होता बोध।।6
समझदार हर व्यक्ति बस,करे यही अनुरोध।
छोटी-छोटी बात पर ,कभी न करना क्रोध।।7
ज्ञानी देते हैं यही ,सबको एक सुझाव।
मद्यप बालक वृद्ध पर,कभी न खाना ताव।।8
दाता ने जो भी दिया ,हँसकर करें कबूल।
असंतुष्टि का भाव है,जग में दुख का मूल।।9
मैं ही केवल श्रेष्ठ हूँ, कहते इसे गुमान।
कोई भी होता नहीं,बस सद्गुण की खान।।10
डाॅ बिपिन पाण्डेय