दोहे—–
प्रकृति पुत्र महाकवि सुमित्रानंदन पंत पर दोहे
(1)
कौसानी एक ग्राम था,हरीतिमा की गोद।
बाल सुमित्रा ने किया,जहां आमोद प्रमोद।।
(2)
पितु थे गंगा दत्त जी, सरस्वती थी मात।
नाम गुसाईं दत्त था, बचपन की है बात।।
(3)
जन्मे छह घंटे हुए, मैया गई सिधार।
पिता व दादी ने किया,पाल पोस उद्धार।।
(4)
अल्मोड़ा शिक्षा हुई, लेखन का आरंभ।
बनी सुधाकर पत्रिका,प्रारंभिक स्तंभ।।
(5)
गोविंद बल्लभ जी हुए, अल्मोड़ा से साथ।
प्रकृति के सुकुमार कवि, प्रकृति थामें हाथ।।
(6)
ममता पूरित छांह थी, प्रकृति मां का रूप।
पंत साहित्य में सदा, प्रकृति छटा अनूप।।
(7)
कवि थे छायावाद के, वे इक सुदृढ़ स्तंभ।
कोमल उर प्रकृति प्रेम,तनिक नहीं था दंभ।।
(8)
गिरने का घंटा प्रथम, सिंधु मंथन अंतिम।
दो उत्कृष्ट कृति थी महाकवि की अप्रतिम।।
(9)
लेखन में थी आपके, देशभक्ति की पुकार।
देखें लोकायतन में,समाज के प्रति प्यार।।
(10)
चिदंबरा पर था मिला, ज्ञानपीठ सम्मान।
दिसंबर सतहत्तर में,हुआ देहावसान।।
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रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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