दोहे
दोहे
सुख-दुख आवत जात है , इक आए, इक जाय
नियम सनातन चलि रहा, काहे मन घबराय ।
सुख-दुख निशा-दिवा भयो, निशा बीत ही जाय
कारी जितनी रात हो, नई सुबह लै आय ।
आया है दुख जाएगा, यह जीवन की रीति
दुख के पीछे सुख चले, करिए उससे प्रीति।
सुख दुख में जो सम रहे, कभी न विचलित होय
मन धीरज साहस रखे, सभी काज शुभ होय।
विपदा के गुन बहुत है , श्रम संघर्ष सिखाय
हो दुश्मन या दोस्त हो, सहज परख हुई जाय।
फल-बीज, मूल या वृक्ष, कब चाहें हों दूर ?
तोड़े सब संबंध समय, विधि के नियम अटूट।
भू पर मानव जनम है, जीवन-सुख संघर्ष
श्रम से जो भागि रहे, होए जीवन व्यर्थ।
विपदा में जो डटि रहे, खुद विपदा घबराए
मन जिनके धीरज रहा, दुख नियरे नहिं आए ।
नर किससे दुखड़ा कहे, सबहीं ज्ञान सिखाय
प्रभु से जो मांगे मदद, सबहीं शुभ हुइ जाय।
कौन बड़ा, छोटा कौन, मुकम्मल हर इंसान
आज अमीरी फल रही, कल का किसको ज्ञान!
बुद्धिहीन निज की व्यथा, कासो कहे बताय
दुरजन सारे ठगि रहे, भल नर राह बताय।
उस नर की हम क्या कहें, जो चोरी की खाय
जीवन भर चोरी करे, अंत नरक में जाय ।
पेड़ चढ़न की बात सुन , भयो बुजुर्ग उदास
कहा बहुत पेड़न चढ्यो, रहा ज़माना याद ।
धरि न हाथ पर हाथ नर, बैठ न विधि के आस
विधि- प्रदत बुधि, हाथ लै, जीवन करहु उजास।
पग-पग नर के चलन से, पगडंडी बनि जाय
बारंबार प्रयास करि, काज सरल हुई जाय ।
जीव-जंतु वन-बाग में, निज का करें प्रबंध
नर निजहिं जो श्रम करे, हो जीवन आनंद।
खाय-सोय दिन बीतिहो, रहा बहुत कुछ शेष
बिनु श्रम नर जीवन कठिन, करहु प्रयास विशेष।
प्रभु दरस दुर्लभ दिखे , रखियो मन विश्वास
मन निर्मल शुभ कर्म जो, प्रभु आपके साथ ।
माया के इस जगत में, नर कितना लाचार
चकाचौंध सब देखि कै, दुविधा भई अपार।
आज-कालि हम करि रहे, संशय मनहि समाय
निश्चय मन ना करि सके, समय बीत ही जाए।
शक्ति, बुद्धि, विद्या सकल, विनु श्रम सब बेकार
बिनु प्रयास, बिन लगन के, स्वप्न सफल व्यापार।
चोर चतुर, चालाक अति, छिपै, बचे, बहु बार
भूल जाही दिवस करै, पहुंचे कारागार।
चैनल अति भल चलि रहै, चमकि-दमकि दिन-रात
बैठि पहर देखै रहो, वही कथा बहु बार।
अपराधी अपराध में, समझे मैं भगवान
अंतकाल जब फल चखे, याद करे भगवान।
अपराधी की क्रूरता, धन – संपदा अकूत
गोली संग खत्म भयो, जैसी थी करतूत।
तकनीकी तकनीक लखि, परिवारी हैरान
लिव-इन, समलिंगी चले, करि रिश्ते बेकाम।
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—-राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित।