#दोहे
प्रेम दिवस ऐसे लगें, आया ज्यों मधुमास।
झूमें उर आनंद में , लेकर नव अहसास।।
मनुज स्वयं पर भार वह, जो होता गुणहीन।
बनो सदा गुणवान तुम, जीवन हो रंगीन।।
शक्ति रूप है सभ्यता, देता नवल विचार।
नये विचारों से सदा, महकें हर घर द्वार।।
खिलकर फूल गुलाब का, देता रंग सुगंध।
मनुज पुष्प से सीखिए, तोड़ स्वार्थ के बंध।।
प्रेम हुआ पाश्चात्य से, भूले निज संस्कार।
संस्कृति अपनी ही भली, करना तनिक विचार।।
जीत लिया हर क्षेत्र है, बना स्वयं पहचान।
नारी अब अबला नहीं, देख लगाकर ध्यान।।
बढ़ा चला दिनमान तक, पहुँचा जो गंतव्य।
उसका स्वागत रात ने, किया प्यार से भव्य।।
फूल पात फल सब दिये, ऑक्सीजन दी छाँव।
काट दिया फिर अंत में, अनुपम तरु का ठाँव।।
परंपरा अच्छी बुरी, लेता जो पहचान।
ज्ञानी साधक नेक बन, पाता है सम्मान।।
स्वप्न खिलें यूँ आपके, खिलते जैसे फूल।
जोश तरीक़ा होश से, चलो समय अनुकूल।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित दोहे