दोहे
मेघा संदेशा तुम जा ,अलकापुरी कहना ।
तुमरे बिना कैसे हो, यक्ष का अब जीना ॥
देख ऊपर चढता , वर्षा ऋतु का बादल ।
करता है प्रिया दग्ध , यक्ष का अब सीना ॥
रतनगिरि आश्रम में, आवास है अब मेरा ।
विश्राम प्रमाद वश , मुझे जहर पीना ॥
प्रिया न लगता मन , हाल तेरा जैसा मेरा ।
खोया तुझको है मैंने ,कामदेव से छीना ॥