दोहे
झूठे बेर चखे , पहुंच कर द्वार तुम्हारे ।
तुम जीते, हम जीत-जीत कर भी हैं , हारे ।।
अमृत में विष घोलता, इच्छा धारी सांप।
नियति की प्यारे मैंने, नीयत ली है भांप।।
झूठे बेर चखे , पहुंच कर द्वार तुम्हारे ।
तुम जीते, हम जीत-जीत कर भी हैं , हारे ।।
अमृत में विष घोलता, इच्छा धारी सांप।
नियति की प्यारे मैंने, नीयत ली है भांप।।