दोहे
दोहे
भोले की जटाओं से,बहती गंगाधार।
गले पहने सांपो को,लिए फुलों का हार।।
गौरा संग हिम राजते,ओ मेरे त्रिपुरार।
शीश जटाधर छाल मृग,सोहत रूप अपार।।
नीलकंठ सिर सोमधर,हे जग के आधार।
चरण पड़े सुमिरन करें, सब तेरा आभार ।।
सुषमा सिंह *उर्मि,,