दोहे
योग रोग का शत्रु है, समझ गए हैं लोग।
चिंता खुद की है जिसे, करता है वह योग।।
योग बना संजीवनी, जीवन का है अंग।
सुबह-शाम करते रहो, रोग न आये संग।।
तन-मन दोनों स्वस्थ हो, काया रहे निरोग।
जीना है सौ वर्ष तो, कर के देखो योग।
योग भगाए रोग को, करते रहिए रोज।
भारत की यह देन है, ऋषि मुनियों की खोज।१।
सदियों से यह आ रही, कैसी देखो रीति।
कांँटें रखवाली करें, भँवरे पाते प्रीति।।
सदियों तक छाया रहे, गीतकार संस्थान।
मुखपोथी का मंच यह, देता सुन्दर ज्ञान।।
सदियों से इस देश में, अतिथि कहाता देव।
भारत की यह सभ्यता, भारत की है नेव।।
जाति बजाओ गर्व से, ढोल बजाओ आप।
मानव कितना श्रेष्ठ है, कर्म बनाता माप।।
जाति बताओ गर्व से, पीट-पीट कर ढोल।
मानव मत बनना कभी, बने रहो बकलोल।।
जैसे जीवन के लिए, धड़कन होती खास।
मेरी जीवनसंगिनी, वैसे रहना पास।।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’