#दोहे
धर्म-ग्रंथ अंतर जले , पाखंड हुआ दूर।
देव मनुज वो हो गया , जिसके मन रब नूर।।
दीप जला जो ओज में , गयी हवाएँ हार।
द्वार अँधेरे मिट गये , जगमग मन संसार।।
सिंधु-तृषा मिटती नहीं , वैभव करे अशांत।
संतोष जड़ित मणि मिली , क्षण-क्षण जीवन कांत।।
तिलक-त्रिपुंडी भाल पर , गले जनेऊ साज।
पंडित तब तक पर नहीं , अंतर-अंतर राज।।
मंदिर मस्ज़िद तू गया , लड़ा धर्म पर रोज।
यह तो पूजा पर नहीं , पूजा समता खोज।।
ख़ुशी स्वर्ग-सम इस धरा , रिश्ते-नाते छोर।
उड़ता तभी पतंग है , जुड़ा रहे वो डोर।।
मान लिया तो हार है , ठान लिया तो जीत।
हर संकट का हल यहाँ , होना मत भयभीत।।
#आर.एस.’प्रीतम’