दोहे
सब धर्मों से ही बडा देश प्रेम को मान
सोने की चिडिया बने भारत देश महान ।
शाम तुझे पुकार रही सखियाँ करें विलाप
पूछ रही रो रो सभी कहाँ शाम जी आप ।
दीप जलाये देखती रोज़ पिया की राह
साजन जब आये नही मन से निकले आह
\लिये चलो मन वावरे प्रभु मिलन की आस
छोड न उसका दर कभी बुझ जायेगी प्यास
तिनका तिनका जोड कर नीड बनाया आज
अब इसमे हर रोज़ ही बजें खुशी के साज
लूट लिया इस वक्त ने मेरे दिल का चैन
बिछुडे मीत मिले नही नीर बहें दिन रैन
इस जोगन को छोड कर कहाँ गये घनश्याम
तुझ दर्शन की प्यास मे ढूँढे चारों धाम
सुगन्ध देखो फूल की सब को रही सुहाय
सीरत हो इन्सान की फूल सा हो सुभाय