दोहे
दर्पण
दर्पण देखो गौर से, देखो बारम्बार|
दिखलाए सच-सच सदा, नहीं करे इंकार||
दर्पण बोले सच सदा, नहीं तनिक भी झूठ|
जैसे को तैसा कहे, भले लाख जा रूठ||
दर्पण धुँधला मत कहो, मुख पर छाई गर्द|
मरहम बाहर ना लगा, भीतर हो जब दर्द||
मन दर्पण मैला हुआ, मैला जगत प्रतीत|
मनवा अपना साफ कर, होगी सब से प्रीत||
दर्पण दर्पण ही रहे, तजता नहीं स्वभाव|
अवसर कैसा भी रहे, देखा कभी न ताव||
-विनोद सिल्ला©