दोहे
आज लोग अपनी संस्कृति को भूल कर पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में अपनी सभ्यता को भूल बैठे हैं उसी पर चंद
—–दोहे—-
भूल गए निज संस्कृति, भूले सद आचार।
मना रहे जो मूर्ख सब, क्रिसमस का त्योहार।।
पश्चिम की जो सभ्यता, अपनाकर हैं चूर।
भारत की संस्कृति से, होते जाते दूर।।
मंगलमय हो किस तरह, क्रिश्चन का नव साल।
बरसों तक जिसने किया, हम सबका बदहाल।।
सोचनीय है तथ्य यह, मन में करो विचार।
अपनाए यदि गैर को, होगा ना उद्धार।।
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती(उ०प्र०)