दोहे
दोहे…
नव्य विधा है काव्य की,झरता है संगीत।
सरस काव्य की धार से,निकला है नवगीत।।
पछुवा की चलने लगी,तेज हवा तत्काल।
अपने अगन समेटती,वर्षा दृष्टि विशाल।।
सांझ सबेरे ढूंढ़ती, पनघट राधा श्याम।
आस लगाए टेरती, कहां छुपे घन श्याम।।
शिल्पकार गढ़ने लगे,कौशल शील विधान।।
होती उत्तम शिल्प की,प्रथक श्रेष्ठ पहचान।।
शिल्प साधना से लिखा, साहित्यिक इतिहास।
साध रहे रस छंद को,भाव और विन्यास।
कोरोना ने ले लिया,क्रूर दस्यु का रुप।
दहशत पूरे विश्व में,फैली काल- स्वरूप।।
डॉ भावना शुक्ल?