दोहे
कोरोना है द्वार पर,दस्तक देता रोज
संभल संभल घर मे रहें,बनकर राजा भोज।
घर से बाहर निकलें नहीं,कोरोना को तड़पाएँ
दास बनाकर कोरोना को,बर्त्तन हम धुलवाएँ।
पियें चाय चालीस कप,अदरख मिर्ची डाल
कोरोना से बच गए तो बचे जेब का माल।
दो गज की दूरी रहे मास्क मुखन पर होय
हस्त प्रक्षालन हो सदा फिर काहे को रोय।
मंदिर अब जाएं नहीं मन को मंदिर मान
सभी भक्त मन मे बसें जय जय सीताराम।
विद्या से सब दूर हों विद्यालय हों बंद
ध्वस्त हुआ शिक्षा जगत’सब’मुस्काएं मंद।
– ———अनिल मिश्र