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11 Apr 2020 · 1 min read

दोहे-1 | मोहित नेगी मुंतज़िर

नेता जी परदेश में , बीच किनारे सोय।
जनता अपने भाग्य पे,बैठी बैठी रोय।

शरद महीने में लगे, बड़ी सुहानी धूप ।
दोपहरी में जेठ की , देखो असली रूप।

दुर्लभ जीवन है मिला , कर मत तू बर्बाद
ऐसा कुछ करके दिखा ,रक्खे दुनिया याद।

आंगन आंगन डोलती,चिड़िया ये अनजान
जात धरम का खेल तो, खेले बस इंसान।

हर दम करना चाहिये , आपको भ्रष्टाचार
अधिकारी हैं आप तो आपका है अधिकार ।

Language: Hindi
201 Views
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