दोहे-1 | मोहित नेगी मुंतज़िर
नेता जी परदेश में , बीच किनारे सोय।
जनता अपने भाग्य पे,बैठी बैठी रोय।
शरद महीने में लगे, बड़ी सुहानी धूप ।
दोपहरी में जेठ की , देखो असली रूप।
दुर्लभ जीवन है मिला , कर मत तू बर्बाद
ऐसा कुछ करके दिखा ,रक्खे दुनिया याद।
आंगन आंगन डोलती,चिड़िया ये अनजान
जात धरम का खेल तो, खेले बस इंसान।
हर दम करना चाहिये , आपको भ्रष्टाचार
अधिकारी हैं आप तो आपका है अधिकार ।