दोहावली
हरी-भरी देखो धरा, हरे बनें अरमान।
हरियाली के नूर से, भरें सदा खलिहान।।//1
नैनों को आनंद दे, करे इन्हें बलवान।
हरियाली जादू लगे, हरे करो मैदान।।//2
हरित-क्रांति संदेश को, समझे हर इंसान।
खुशहाली भरते यहां, सुरभि लिए उद्यान।।//3
हरियाली ने भर दिया, नैनों में अभिराम।
स्वर्ग दिखाई दे धरा, हसीं सुबह हर शाम।।//4
प्रीतम पुलकित मन करे, फूलों की दास्तान।
फूलों जैसे उर खिलें, गूंजें जग में गान।।//5
प्रीतम हरियाली लिखे, ख़ुशियों का संदेश।
जहां रहे यह शान से, महके वही परिवेश।।//6
प्रीतम हर्षित उर करे, हरियाली का छोर।
हर्षित उर तो भूप हम, क्यों न चलें इस ओर।।//7
आर.एस. “प्रीतम”
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