दोहे
धर्म वही जो मान दे,राजा रंग फ़िजूल।
पुण्य हेतु हों फूल तो,पाप हेतु हों शूल।।//1
दृष्टि रखे जो एक है,देता सबको न्याय।
राजा वह तो नेक है,पलपल पूजा जाय।।//2
झूठ हुये है शूल सम,सच होता सम फूल।
शूल चुभे तो दर्द हो,फूल ख़ुशी अनुकूल।।//3
साख रहे चाहें सभी,दूर करें बिन साख।
कनक गले का हार हो,बाहर फैंकें राख।।//4
हीरे सम उर प्रेम है,घर-मन रखता शाद।
मन होता है शाद तो,लगता जग आबाद।।//5
झाँक रहा घन बीच से,तुमसा सुंदर चाँद।
तान प्यार की छेड़ता,बादल को ज्यों फाँद।।//6
चलना सीधी राह का,होती चाहे देर।
सबको भाता रूप है,देख सरलता घेर।।//7
अवसर को मत छोड़िए,मिले एक ही बार।
रोते रहिए बाद में,देंगे सब दुत्कार।।//8
हुनर खुदी में डाल के,बनिए जग की शान।
जैसे हीरा एक है,मान कोयला खान।।//9
संगत अच्छी राखिए,मिलते गुण भरपूर।
माली बेचे फूल है,ख़ुशबू हाथ हुज़ूर।।//10
#आर.एस.’प्रीतम’