दोहे-शानदार
धर्म वही जो मान दे,राजा रंग फ़िजूल।
पुण्य हेतु हों फूल तो,पाप हेतु हों शूल।।
दृष्टि रखे जो एक है,देता सबको न्याय।
राजा वह तो नेक है,सदैव पूजा जाय।।
काँटा होता झूठ है,कभी बने ना फूल।
शर्म मिलेगी हार के,करना मत तू भूल।।
दामन रखना पाक तू,बनती इससे साख।
खोटा भाए यार कब,सुनिए फूटी आँख।।
हीरा देखो प्यार है,करता मन को शाद।
मिलन दिलों का देख के,करता जग है याद।।
झाँक रहा घन बीच से,तुमसा सुंदर चाँद।
तान प्यार की छेड़ता,बादल को ज्यों फाँद।।
चलना सीधी राह का,होती चाहे देर।
सबको भाता रूप है,देख सरलता घेर।।
अवसर खोना ठीक ना,मिले एक है बार।
रोना चाहे बाद में,मिलती है दुत्कार।।
हुनर खुदी में डाल के,बनिए जग की शान।
जैसे हीरा एक है,मान कोयला खान।।
संगत अच्छी राखिए,मिलते गुण भरपूर।
माली बेचे फूल है,ख़ुशबू हाथ हुज़ूर।।
आर.एस. “प्रीतम”
———————