#दोहे (व्यंग्य वाण)
#दोहे (व्यंग्य वाण)
अंतर्मन की चाह पर,कब चलता इंसान।
द्वेष कलह पाखंड से , जीवन भर हैरान ।।
बुद्धि ज्ञान विवेक बहुत,बहरे मानव कान।
अंदर की आवाज पर,दिया नहीं है ध्यान।।
अंतर्मन कहता सदा,क्यों बनता शैतान।
कर्म धर्म के मार्ग से, खोज यहाँ भगवान ।।
चौरासी के चक्र का,अंतर्मन को ज्ञान ।
मन माया में उलझकर,भूला प्रभु अहसान ।।
कुटिल चाल मन ने चली,मिला बुद्धि का साथ।
काया माया के लिए,नवा रहा नित माथ।।
अंतर्मन टोके बहुत,पावन मानव देह।
विरला मानव सुन सका,अंतर्मन प्रभु गेह।।
सभी आधुनिक हो रहे,देते नाम विकास।
आध्यात्म की खबर नहीं,होता जीव निराश।।
आडम्बर ही आधुनिक,सुख सुविधा हित खेल।
आत्म ज्ञान ओझल हुआ,टूट गया प्रभु मेल।।
राजेश कौरव सुमित्र@