दोहे रमेश शर्मा के
कितना भी समझाइये, दें कितने भी तर्क !
घडा रहा चिकना अगर, नहीं पडेगा फर्क !!
नाजायज व्यवहार पर, बने रहे जो मूक !
अपराधी सा बोध दे, जीवन भर वो चूक !!
अरमानों की राख के, नीचे सुलगी आग !
जला रही है विरह के, अश्कों भरे चिराग !!
चकाचौंध ने शहर की, ऐसा किया कमाल !
हवेलियाँ भी गाँव की, करने लगी सवाल !!
करें सियासत राज्य में, सत्ता के गठजोड़ !
दर्द बढे तब राष्ट्र का, …..रोएं कई करोड़ !!
एक मुखी रुद्राक्ष सा, दे जो शुभ परिणाम !
रत्न कहॉ संसार में , ….होते हैं वह आम !!
दुष्ट न छोड़े दुष्टता ,…….लाख करो उपचार !
मुंह पर मीठा बोलकर , करे पीठ पर वार !!
दिल में जिसके बैर का बैठ गया शैतान !
कैसे समझे फिर उसे, ..कोई भी इंसान !!
जिसके जो दिल ने कहा, वो ही दिया बयान !
जनमानस के मर्म का,…किसे यहाँ है ध्यान !!
रिश्तों में आए नजर,.. वहाँ शीघ्र बिखराव !
जहाँ दिलों में स्वार्थ का, पकने लगे पुलाव !!
हो गुस्से के साथ में,….अगर कहीं उन्माद !
हिल जाती है तब वहाँ , रिश्तों की बुनियाद !!
हुआ वहीं पर युद्ध है, चली वहीं बंदूक !
मानवता की सोच में, हुई जहाँ भी चूक।!
रहे सुर्खियों में सदा, पाखण्डी इन्सान !
उल्टा -पुल्टा झूठ सच, देता रहे बयान !!
पता नही किस वक्त क्या, दे दें दुष्ट बयान !
काबू में जिनकी कभी, रहती नहीं जुबान !!
रमेश शर्मा