मानवता न भूलें
जाति-धर्म तो हार है,मानवता जयकार।
पूजा करना कर्म की,यह सुख का आधार।।
भूले हम हैं मूल को,खुद ही बनते मूल।।
यही कलह का राज है,बाकी सभी फ़िजूल।।
धोखा देना नीचता,कभी न देना भूल।
फूलों बदले फूल हैं,शूलों बदले शूल।।
राम-राम का जाप तू,करता आठों याम।
कर्म बिना सब व्यर्थ है,सुनिए भाग्य-गुलाम।।
पागल नर वो ख़ार-सा,चुभें सुबह या शाम।
जो नित बाँटें प्यार को,पाता वो आराम।।
भीगा मन जो प्यार से,मीरा का वो धीर।
कोशिश लाखों मौत की,होती वहाँ अधीर।।
तोड़ो ना तुम झूठ से,मन के धागे आज।
सच से हारे जानते,क्या होती है लाज।।
गिनती भूलें लोग हैं,कहते दो को चार।
गिरें हारकर तेज़ से,पाया ना आधार।।
तेली जाने तेल की,माली जाने बाग।
जिसका घर है टूटता,भूले कैसे राग।।
प्रीतम तेरी प्रीत तो,सौ आगों की आग।
विरोध करता भूल के,जला वही है नाग।।
आर.एस.बी.प्रीतम
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