#दोहे मस्ती प्रेम प्रेरणा संस्कारों के
जीवन मस्ती प्रेम में , उड़ता सरिस पतंग।
हरजन देख उड़ान को , करना चाहे संग।।
सफल वही इंसान है , जिसकी आगे सोच।
जो उलझा है सोच में , जीवन वो संकोच।।
हर संकट का हल यहाँ , होना नहीं अधीर।
फटे दूध से ही बने , नींबू डाल पनीर।।
पढ़ा लिखा शिक्षित नहीं , जिसके मन में भेद।
शिक्षित संत कबीर थे , बाँटा ज्ञान अभेद।।
पीर पराई भूलके , अपने सुख से प्रेम।
मनुज धर्म ये तो नहीं , धर्म सभी का क्षेम।।
तरु – पल्लव से मित्र क्या , छूटे पतझड़ संग।
लोहा – चुंबक – से जुड़ें , बंधन तभी उमंग।।
सबकी अपनी सोच है , कैसे किसकी मौज़।
प्रीतम संस्कारों जुड़ी , मौज़ सभी का ओज।।
(C)(R)-आर.एस.’प्रीतम’