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27 Nov 2020 · 1 min read

#दोहे-भावों का मोल

कथनी करनी एक हो,मैं उसपे कुर्बान।
गिरगिट होकर लूटता,कहूँ उसे नादान।।

सुलझी बातें ही करो,वरना रहना मौन।
भाव तुम्हें पहचान दें,मित्र हुए या दौन।।

ऊँच नीच है सोच की,धर्म जाति है ढ़ोंग।
नाक नाक दुगुना करे,सुंदर है जो लौंग।।

बंद नयन वो देखते,खुले रहें अनजान।
सूरदास को जानिए,कैसे बने महान।।

कर्म धर्म का मर्म जो,समझे भरे उड़ान।
दंभ करे जो मूल से,मिले ख़ाक में शान।।

गीत खिले संगीत से,नेकी से इंसान।
पुष्प रंग बू से बने,उर नैनों का मान।।

भ्रष्ट बने हैं लोग जो,समझें ख़ुद को चोर।
चोरी करना पाप है,पाप नरक का छोर।।

#आर.एस.”प्रीतम”
सर्वाधिकार सुरक्षित दोहे

Language: Hindi
302 Views
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