प्रीति के दोहे, भाग-2
प्रेम अनूठी साधना,ज्यों कविता हित छंद।
प्रेम सरस है काव्य सम,भरे हृदय आनंद।।11
प्रेम शांति का पुंज है ,दूर करे संत्रास।
प्रेम घटाए दूरियाँ,प्रेम सुखद अहसास।।12
त्याग समर्पण प्रेम है ,और प्रेम ही शक्ति।
प्रेम बिना भगवान की,कभी न संभव भक्ति।।13
रही सदा ही प्रेम की, पूँजी जिसके पास।
बनकर रहता ये जगत,उसका सच में दास।।14
प्रेम दिलों को जोड़ दे,प्रेम मिटाए बैर।
अपने बनते प्रेम से ,जो होते हैं गैर।। 15
करो न कोई प्रेम को,झूठ – मूठ बदनाम।
प्रेम बनाए जगत में,सबके बिगड़े काम।।16
इश्क इबादत मानता, जो भी एक समान।
उसको आते हैं नज़र,आशिक में भगवान।।17
प्रेम दिव्य अहसास है, ईश्वर का वरदान।
इसमें विष व्यभिचार का,घोल रहे नादान।।18
प्रेम मंत्र के जाप से ,बनता जीव समर्थ।
प्रेम सृष्टि आधार है,प्रेम बिना जग व्यर्थ।।19
सुनकर वंशी प्रीत की,सुर्ख हुए रुखसार।
तेज धड़कनें हो गईं, भूल गया संसार।।20
डाॅ बिपिन पाण्डेय