दोहे नीति के
सबसे मिलिए प्रेम से,लब पर ले मुस्क़ान।
सच्चे मानव की यही,होती है पहचान।।
शूल लगे जब पाँव में,लेना स्वयं निकाल।
और निकालेंगे अगर,सौदा हो तत्काल।।
सेवा करना सीखिए,हो आदर सत्कार।
मन सबका ये जीत ले,प्रेम भरा व्यवहार।।
धोखा देना पाप है,समझो इसको आप।
जीवन के किस मोड़ पर,लग जाएगा श्राप।।
जाने पर माने नहीं,अद्भुत लिए विचार।
ठोकर खाकर मानता,होता जब लाचार।।
प्रेम सदा पुलकित करे,करे पुष्प बौछार।
जीवन तो अभिराम है,खुले अगर मन द्वार।।
कौन यहाँ है श्रेष्ठ जन,कौन करे उपकार।
सबका मालिक एक है,कर्मों का आधार।।
–आर.एस.प्रीतम