नीतिगत
दोहे
प्रीतम नखरा रूप का,करिए नहीं भुलाय।
खिले सदा कब फूल है,एक दिवस मुर्झाय।।
प्रीतम हांडी काट की,चढ़े नहीं दो बार।
बना रहे विश्वास तो,ख़ुशी रहे घर द्वार।।
प्रीतम पंखा प्रेम का,जब तक चलता डोल।
रोम-रोम शीतल करे,बढ़े हृदय का मोल।।
प्रीतम सेवा हाथ है,करना मन में ठान।
फल जो मिलता प्रीत का,करता हमें महान।।
प्रीतम मिलके साथ में,ताक़त बढ़े अपार।
केला-गुच्छा लाभ में,खुला हानि में यार।।
तारीफ़ गुणों की करो,बनो सदा मनमीत।
शुभ में सारे काम हों,दुनिया गाये गीत।।
प्रीतम मीठे बोल से,दुश्मन जाए हार।
खारा पानी मेघ बन,बरसे मीठी धार।।
आर.एस.”प्रीतम”