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28 Mar 2021 · 1 min read

दोहे तरुण के।

व्यथित हुए अपने सभी,भाता नहीं बिछोह।
रंग सभी फीके लगें, कर दूं क्या विद्रोह।।

बनी हुई निष्ठुर नियति, दया करो घनश्याम।
विनय करें कर जोड़ सब,तज दो अब विश्राम।।

रंगहीन होली हुई,फीके सब पकवान।
बरसाना सी रास हो,ऐसा दो वरदान।।

महारोग का कीजिये, मोहन अब तो अंत।
पतझड़ सम लगने लगा,खिलता हुआ बसन्त।।

मुख पर सब पहने हुए,भय से आज नकाब।
गले नहीं मिलते मनुज,करते बस आदाब।।
पंकज शर्मा”तरुण”.

Language: Hindi
1 Comment · 460 Views
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