दोहे – डी के निवातिया
दोहे
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सृष्टि ये तुमने रची, तुम जीवन आधार ।
कोटि कोटि तुम्हे नमन, हे जग पालनहार ।।
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देव-दैत्य सब करम फल, तन से सब इंसान ।
जनम भए सम कोख से, शाह रंक भगवान।।
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सकल रूप में पूजते, भगिनी, भार्या, मात।
तुम से सब नातें बने,सुत, सखा, पिया, तात।।
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नारी जग की आन है, नारी घर की शान।
सेवक धरम बता रहे, रखना इनका मान।।
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देवी लक्ष्मी शक्ति ये, सरस्वती विद्या रूप।
जिंदगी यह संवारती, बन छांव कभी धूप।।
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मात सम प्रीती नहीं, पित सम पालनहार।
गुरु ईश का रूप है, जीवन तारे पार।।
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स्वरचित: – डी के निवातिया