#कविता// ‘ऐसा जीवन’
#दोहे एवं चौपाइयाँ – ‘ऐसा जीवन’
पाप रहित मन कीजिए,शक्ति शील का संग।
मीठा सच्चा बोलिए , खिले रहें उर अंग।।
अपनों जैसे और हों , सबसे सम व्यवहार।
मानवता की रीत से , महकें आँगन द्वार।।
#चौपाइयाँ
हर संकट ऐसे झेला है।
फ़ुटबॉल बनाकर खेला है।।
हम हँसते और हँसाते हैं।
दिन मौज़ लिए कट जाते हैं।।
हमने निज कर्म सुधारा है।
सबका अच्छापन प्यारा है।।
सही ग़लत है सबका अपना।
सबके हित हम देखें सपना।।
पर उपहास कभी ना भाए।
कुछ ना आए मौन सुहाए।।
हृदय प्रेम का सागर अपना।
नित्य कर्म है सेवा करना।।
लापरवाही एक बुराई।
मन से इसकी सदा जुदाई।।
काम किया है कम या ज़्यादा।
हँसके मन से नेक इरादा।।
मृग तृष्णा सम जीवन कैसा।
चैन छीन ले कैसा पैसा।।
संतोषी जीवन शुभकारी।
पल – पल जिसका मंगलकारी।।
प्रेम ज्ञान की रहे पिपासा।
रिश्तों की हँस मिले दिलासा।।
प्रेमभाव की उर धूप खिले।
लेकर चंदन मन रूप मिले।।
#दोहा
मिश्रण पानी दूध सम,मनुज धर्म का मूल।
माया खेले खेल पर , मानव जाए भूल।।
मानव – मानव तू अगर , माया-ठोकर मार।
देव यहीं पर बन सके ,भुला सके मन ख़ार।।
सर्वाधिकार सुरक्षित सृजन
कवि-आर.एस.’प्रीतम’