दोहे – झटपट
छोटी छोटी बातों पर, छिड़ रहा विवाद,
अति जल्द सुलह करें ,शुरू करें संवाद.
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संवाद पर विराम न लगे रखें हरदम याद,
गुस्से से किनारे करें करना सदा फरियाद.
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ऐसे रचयिता मां बाप, नहीं प्रकृति से भिन्न
जैसा निसर्ग मिला आगे बढ़ गये खाकर अन्न.
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उद् भव में संकेत छुपे, कष्ट बढ़े, सुख घटे,
उत्पति के समय छंटे, तमस घटे, बादल छटे,
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धरा ते ही मिले संपदा बीज पादप वा फूल,
भूल तुम्हीं से हुई चक्र फिरे सही बैठे चूल़..
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कहना था सो कहे नहीं, व्यर्थ किये बखान,
सबकुछ पक्ष में होते हुए मारा गया किसान.
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बेटा बेटी एक समान, परवरिश में भेद क्यों,
चूल्हा बर्तन सब करे, स्कूल से रोकी क्यों ,,
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बुद्धू धर्म खोजने चले, खुद में खोजत नाहिं,
चार में से एक कम हुआ, रोवत रुकते नाहिं.
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बेहोशी में व्यर्थ जन्म गंवाए सोच समझ चाल
बदहाल रहे बिन बात, वार ते बचाते आई ढ़ाल
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वक्त फिरने के फेर में, आलसी देखे बाट,
संचित भी खत्म हुआ, सोये ओढकर खाट.