दोहे : अपना यह मंतव्य….
आपस में हम सब करें, न्यायोचित व्यवहार.
दलित, दुखी, कमजोर पर, मत हो अत्याचार..
प्रेम त्याग करुणा क्षमा, मानवता के अंग.
असुरवृत्ति से हो रही, सदा-सदा से जंग..
यद्यपि हैं अधिकार पर, भूल नहीं कर्तव्य.
दायित्वों को दें निभा, अपना यह मंतव्य..
मानव उनको मत समझ, असुर हृदय पहचान.
आतंकी जो भी बने, वे सब दैत्य समान..
दैत्यों पर मत कर दया, धरती पर वे भार.
होते मानव के लिए, मानव के अधिकार..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’