दोहा
#रचना
उठा हृदय में है सदा, जब कोई भी द्वंद ।
अंर्तमन ने तब गढ़े , भाव युक्त कुछ छंद।।
उथल-पुथल लेकर चला,भाषा-भाषी बंध ।
मणिकर्णिका सा चमके,शब्द वर्ण रस छंद।।
चिंतन मंथन हो सदा,बैठूँ हिन्दी तीर
प्रेम भँवर जब डूबती,गढूँ तूलिका पीर ।।
गीत-प्रीत,गाथा-कथा,सब की है मुस्कान।
हिंदी ‘मेरा’ मान है,इसको लो पहिचान ।।
चिर आशा मेरी यही,रहूँ सदा परिरंभ ।
रिश्ता हिन्दी हिंद का ,बने नहीं अब दंभ।।
गहरे सागर पैठ के,मिले भाव बहु रंग
गह गह ,कर ये लेखिनी ,रचूँ ग्रंथ नव ढंग।।
मनोरमा जैन ‘पाखी’