दोहा
दरिया, सागर, नैन के, गहरे होते राज।
बहता है जब नीर तो, कब होती आवाज।।
जिसे सुलाने में गई, जाने कितनी रात।
बेटा वह माँ-बाप से, करे न कोई बात।।
चिंतन से चिंता घटे, आते नव्य विचार।
राह निकल जाती नयी, दुख जाता है हार।१।
चिंतन हो कैसे मिले, सबको अब आहार।
औषधि, शिक्षा मुफ्त में, सबको दे सरकार।२।
चिंतन करना चाहिए, सुबह शाम दिन रात।
मँहगाई का दौर यह, चिंता की है बात।३।
चिंतन लाता चेतना, चिंता दुख सह रोग।
चिंतन करिए साथियों, चिंतन है इक योग।४।
चिंतन अनुसंधान है, सुगम करे हर राह।
चिंतन से संभव सखे, मानव जो ले चाह।५।
चिंतन से नव चेतना, आ जाती है मित्र।
मानव जीवन में लगे, चिंतन जैसे इत्र।६।
सावन, बिन साजन सखी, बरसाता अंगार।
तन मन मुरझाने लगा, शीतल मन्द फुहार।।
सावन भादो हो गए, मेरे दोनों नैन।
साजन तेरी याद में, जागूं मैं दिन-रैन।२।
सावन, मेरे देश में, अब तेरा क्या काम।
दूर देश जाने कहाँ, बसते मेरे श्याम।३।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’