तीन छंद
आग इर्ष्या की जलाती उसे जो जलता है
जैसे लकडी कोई जलती है राख होती है
हम जो कल थे वही हैं आज,मुस्कुराते है
गमों के बीच भी, मस्ताना कहे जाते हैं
हारता है वो जो जीतने के लिये मरता है
हम तो हर हार में जीतने की खुशी पाते हैं
@डॉ.गोरख प्रसाद मस्ताना