चंद्रयान ने चांद से पूछा, चेहरे पर ये धब्बे क्यों।
भाव में शब्द में हम पिरो लें तुम्हें
सत्साहित्य सुरुचि उपजाता, दूर भगाता है अज्ञान।
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मैं एक महाकाव्य बनना चाहूंगी
बिड़द थांरो बीसहथी, मम मुख कथो न जाय।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
बहुत जरूरी है तो मुझे खुद को ढूंढना
हम सभी को लिखना और पढ़ना हैं।
- दुनिया की होड़ ने तोड़ दिए अच्छे अच्छों के जोड़ -
इंसान को पहले इंसान बनाएं
चांद सूरज भी अपने उजालों पर ख़ूब इतराते हैं,
पुरुष चाहे जितनी बेहतरीन पोस्ट कर दे
ये तेरी यादों के साएं मेरे रूह से हटते ही नहीं। लगता है ऐसे
Now we have to introspect how expensive it was to change the